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Bank Strike Bihar: निजीकरण के खिलाफ राजधानी में SBI समेत देश के कई सरकारी बैंकों में लटके ताले, सरकार क्यों कर रही है निजीकरण

पटना: देशभर में  सरकारी बैंको के निजीकरण मामले को लेकर सरकारी बैंकों (Bank Strike) की हड़ताल है। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनिंयस (United Forum of Bank Unions) की अपील का असर बैंकों के कामकाज पर दिखा रहा है। राजधानी के सरकारी बैंकों में ताले लटके रहे और कर्मचारी और अधिकारी अपनी मांग के समर्थन में प्रदर्शन करते नजर आए। बता दें कि दो सरकारी बैंकों के निजीकरण के प्रस्ताव के खिलाफ सरकारी बैंकों में दो दिन कि हड़ताल का आज पहला दिन है।

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निजीकरण से गरीब लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा असर

बैंकों के यूनियन की अगुवाई करने वाले यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनिंयस ने सरकारी बैंकों के निजीकरण के प्रस्ताव का विरोध किया है। काफी पहले ही बैंक से जुड़े यूनियंस ने 15 और 16 मार्च को हड़ताल की अपील की थी। आज इस हड़ताल का असर राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद सरकारी बैंकों में दिखा। इलाहाबाद, यूनियन बैंक, केनरा बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा सहित दूसरे सरकारी बैंकों में ताले लटके रहे।

 हड़ताल पर डटे कर्मचारियों का कहना है कि, ‘केंद्र सरकार सरकारी बैंकों के निजीकरण कर रही है और इसका नुकसान आखिर जनता को उठाना  होगा। दो सरकारी बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से हैं. इसका असर सीधा-सीधा अर्थव्यवस्था के साथ गरीब लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा क्योंकि सरकार बैंकों में आज भी गरीब जनता ही आती है। जनधन खाता खोलना हो तो सरकारी बैंक, दूसरी तरह के लोन (Loan) भी गरीब तबकों को सरकारी बैंक ही बांटते हैं फिर निजीकरण किस लिए.।

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सरकार क्यों कर रही है निजीकरण

वही  सरकार बैंको के राष्ट्रीयकरण को बड़ी समस्या मानती है । इस पर सरकार का  कहना है बैंकों के मामले में एक बड़ी समस्या यह  है कि पिछली तमाम सरकारें जनता को लुभाने या वोट बटोरने के लिए ऐसे एलान करती रहीं जिनका बोझ सरकारी बैंकों को उठाना पड़ा। क़र्ज़ माफ़ी इनका सबसे बड़ा उदाहरण है। और इसके बाद जब बैंकों की हालत बिगड़ती थी तो सरकार को उनमें पूंजी डालकर फिर उन्हें खड़ा करना पड़ता था।

राष्ट्रीयकरण के बाद तमाम तरह के सुधार और कई बार सरकार की तरफ़ से पूंजी डाले जाने के बाद भी इन सरकारी बैंकों की समस्याएं पूरी तरह ख़त्म नहीं हो पाई हैं। निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों के मुक़ाबले में डिपॉजिट और क्रेडिट दोनों ही मोर्चों पर वो पिछड़ते दिखते हैं। वहीं डूबनेवाले क़र्ज़ या स्ट्रेस्ड ऐसेट्स के मामले में वो उन दोनों से आगे हैं।

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रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी का कहना था कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक राजनीतिक फ़ैसला था, इसीलिए इनके निजीकरण का फ़ैसला भी राजनीति को ही करना होगा। लगता है इस पर राजनिति ने फैसला लिया है।

बता दें कि शनिवार, रविवार, सोमवार, और मंगलवार यानि लगातार चार दिन बैंक बंद था जिसके चलते बैंक यूनियंस और सरकार के बीच जारी तकरार का नुकसान आखिरकार जनता को उठाना पड़ा है।

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