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बोकारो होली के रंगों और नारी शक्ति की गाथाओं से सजी, महिलाओं ने अपने अपने तरीके से होली का समा बांधा

बोकारो: होली के त्यौहार नजदीक आ रहा है। लोग होली के रंग में लगने लगे है। इसी क्रम में बोकारो में इस बार की गोष्ठी होली के रंगों और नारी शक्ति की गाथाओं से सजी थी। होली के रंगों की तरह विविध रंगों की रचनाओं से सभी सदस्याओं ने मन मोह लिया । सर्वप्रथम नीता सहाय ने शारदा स्तुति कर गोष्ठी का आरंभ किया। इकाई अध्यक्षा काजल कृति भलोटिया ने समस्त सदस्याओं का स्वागत किया एवं होली के पर्व व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ दीं। मीडिया प्रभारी स्मिता ने चित्ताकर्षक मंच संचालन किया।

वही एक ओर स्निग्धा बोस ने ‘फागुन में नारी शक्ति’ रचना पढ़ी तो रेणुका सिन्हा ने अपनी कविता ‘फगुआ के गीत ‘ सुनाई। शीला तिवारी ने ‘गुलमोहर हुआ जाए मन फागुन में ‘ कही वहीं क्रांति श्रीवास्तव ने कुवार की धूप’ गाई। निरुपमा कुमारी ने कविता’ सुनाई और रीना कुमारी ने ‘मैं सीता सी बनूं’ कही। नीता सहाय की रचना ‘बदला मौसम’ थी और आशा पुष्प ने रचना ‘होली’ से रंग भरा। अर्चना अश्क़ मिश्रा की रचना ‘कुछ रंग जिंदगी के ऐसे भी’ रही और अमृता शर्मा ने ‘होली के रंग -भंग की तरंग’ से समा बांधा।

इसके अलावा करुणा कलिका के भोजपुरी गीत ‘फागुन बड़ा शोर करता’ एवं स्मिता के ‘फगुआ’ ने आनंद बरसा दिया। गीता कुमारी गुस्ताख़ ने ‘आई है फागुन की बेला’ सुनाई और ज्योतिर्मय डे राणा ने ‘झारखंड की सशक्त नारी’ सुनाई । काजल कृति भलोटिया ने ‘अंतस में बिखरे गुलाल’ पढ़ी और ऋचा श्रीवास्तव ने ‘होली’ सुनाई । अंत में ज्योतिर्मय डे राणा की लघु नाटिका ‘नारी की पहचान’ ने मंत्रमुग्ध कर दिया ‌ सचिव अर्चना अश्क मिश्रा ने धन्यवाद ज्ञापित कर कार्यक्रम का समापन किया।

अंतरराष्ट्रीय महिला काव्य मंच, बोकारो इकाई की काव्य गोष्ठी, संस्थापक नरेश नाज़, राष्ट्रीय उपाध्यक्षा सारिका भूषण, एवं राज्य अध्यक्षा मोना बग्गा संज्ञान में रविवार को सफलतापूर्वक संपन्न हुई ।

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