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झारखंड के सीएम के पैतृक गांव में खेली जाती है प्राकृतिक होली, फूलों से बनाया जाता है रंग

रामगढ़: होली का त्यौहार आ गया है। अपने अपने तरीके से लोग होली मनाने की तैयारी में लगे हुए हैं। रंग और अबीर के साथ होली खेली जाती है इसके बारे में तो सभी लोग जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि फूलों से भी होली खेली आती है।

सदियों से रही परंपरा

दरअसल हम बात कर रहे हैं झारखंड राज्य के रामगढ़ की जहां लोग प्राकृतिक होली खेलना पसंद करते हैं। बता दे वहां होली खेलने के लिए प्लास के फूलों का व्यवहार किया जाता है। इसी बाबत झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पैतृक गांव निमान में ग्रामीणों ने फूलों से रंग बनाने काम शुरू कर दिया है। फूलों के क्या अहमियत बेइंतहा बढ़ जाती है। दरअसल फूलों से मिलने वाले रंग से ही वह ग्रामीण लोग होली खेलना पसंद करते हैं। यह इनकी परंपरा है। जो सदियों से चली आ रही है। ग्रामीण पलाश के फूलों को जंगल से तोड़कर लाते है और उसके बाद शुरू होती है रंग बनाने की प्रक्रिया। फूलो को सुखाया जाता है पीसा जाता है और उसके बाद पानी में उबालकर उस से पक्का रंग बनाया जाता है।

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बेहद खास होती है होली

बसंत आने पर पलाश का फूल खिलना शुरू होता है जिसे तोड़ने के लिए ग्रामीण टोलियां बनाकर जंगलों में जाते हैं। लोगों के लिए ये बेहद खास होता है जब सब इकट्ठा होकर होली मनाने की तैयारियां करते हैं । शहर से होली मनाने गांव पहुंचे लोग भी इस परंपरा को निभाने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है। लोग मिलावटी रंग और और गुलालो से परेशान रहते हैं उनकी त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन गांव में पलाश के फूलों से बनी रंग की बात ही निराली है। देखा जाए तो कोरोना काल  में इस रंग का महत्व और भी बढ़ जाता है।

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